इस पोस्ट में आपको बताया जाएगा कि Waterfall Model क्या है? और उसके SDLC version कैसे हैं!
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Waterfall model in (SDLC) Software development live cycle
Software निर्माण के प्रारंभ से Software का निर्माण होने तक की सभी activity या storage SDLC कहलाती है।
SDLC software के निर्माण को theory तथा diagram के रूप में प्रस्तुत करती है। SDLC के प्रयोग से Software निर्माण को एक Systematic ढांचा मिलता है,
SDLC को document के रूप में प्रस्तुत करके Software के निर्माण के किसी भी Phase पर जांचा तथा परखा जा सकता है।
Waterfall model in Hindi :-
waterfall model SDLC (System Development Life Cycle ) का एक software Development reference model है !
जिसकी Theory और सिद्वांतो को ध्यान में रखते हुए किसी भी Software Application को बनाया जाता है !
waterfall model एक Popularऔर Liner Sequence software development model है !
इसमें इस बात को समजने और समझाने पर जोर दिया जाता है की जब तक development का एक भाग पूर्ण नहीं हो जाता दूसरे भाग पर काम नहीं किया जासकता है !
और जब एक Phase Complete हो जाता है तो वापस पिछले वाले Phase पर काम नहीं किया जायेगा यानि यह ऊपर से निचे की ओर चलता है ! एक पानी के झरने की तरह इसलिए इसका नाम Waterfall model है !
Feasibility Study :-
Feasibility का अर्थ है सत्यता अर्थात होने की संभावना Feasibility मैं दो संभावनाएं देखी जाती है। –
- Financial –बजट से संबंधित
- Technical –इसमें तकनीक से संबंधित ( जैसे- कि उपग्रह Engineer etc. ) उपलब्ध है या नहीं।
Requirement Analysis -:
इस phaseमें project में आवश्यक सभी सामग्री को इकट्ठा करना तथा analyze करना सुनिश्चित किया जाता है।
Requirement gather करते वक्त यह ध्यान दिया जाता है कि Relebant informationको ही रखा जाए।
Costumer कि जरूरतों के आधार पर Requirement gather करने के बाद इन सब को एक document के रूप में लिया जाता है,
इस document को SRS (software Requirement Specification)कहते हैं।
Design -:
इस phase में SRS document की Requirement के आधार पर S/W का Structure बनाया जाता है,
जिसको किसी Programming Language में Code किया जा सके ।
Design के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल होता है–
Traditional design -:
इसका इस्तेमाल कई Software बनाने के लिए किया जा चुका है, इस approach में Structure का निर्माण करके यह देखा जाता है
कि क्या करना है, ( What Needs to done),
Object Oriented Design -:
इस Approach में object को identify करके उसके सापेक्ष इस्तेमाल होने वाले सभी object से संबंध स्थापित किया जाता हैं ।
यहapproach हमें ( What needs to be done)साथ- साथ(How to do it)भी समझाती हैं ।
CODING -:
इसphase मेंSoftware design कोsource code में बदला जाता है । Coding का एकstandard तरीका है,
जो कि प्रत्येक company द्वारा अपने-अपने रूप से Follow किया जाता है,
Coding के कुछ अच्छे तरीको में Jump तथा Go-to का इस्तेमाल नहीं किया जाता है ।
Variable तथाfunction के नाम को निर्धारित किया जाता है । Maximum number of line निर्धारित की जाती है,
Header तथा comment का प्रयोग किया जाता है,
TESTING -:
Coding का Phase पूरा होने के बाद इस Source code को Error के लिए Test किया जाता है
जिससे कि Software बनने के बादइसमें कोई त्रुटि ना रह जाए ।
Testing तीन प्रकार से की जाती है।
Unit Testing:-
यहां पर individual module को test किया जाता है ।
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Integration :-
यहां पर सभी module कोintegration करके (एक module में दूसरा जोड़ के Test किया जाता है । )
System Testing :-
System Testing का उद्देश्य यह है कि बनाया s/w SRS केआधार पर निर्मित किया गया है या नहीं ।
यह मैं तीन प्रकार की Activity की जाती है–
α-Testing -:
यह Testing s/w बनाने वाली Team के द्वारा की जाती है।
β-Testing -:
यह Testing friending customer द्वारा की जाती है ।
Acceptance Testing -:
यह Testing Customer द्वारा स्वयं की जाती है। यह Testing निर्धारित करती है कि customer s/w को accept करता है या subject करता है ।
Maintenance -:
Corrective maintenance -:
इसमें इनerrors को ठीक किया जाता है जो कि s/w developer करते वक्त discover नहीं हो पाई थी ।
Perfective maintenance -:
यह maintenance customer की जरूरतों के आधार परs/w के function में बदलाव के लिए की जाती है ।
Adaptive maintenance -:
इस प्रकार की maintenance s/w को नये environment में चलाने के लिए की जाती है
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